इन यादों को समेटना इतना आसान भी नहीं (poem)

 इन यादों को समेटना इतना आसान भी नहीं



कभी-कभी सोचती हूं तो लगता है,
अभी तो क्लास 5th  में
छोटे - छोटे से हम थे।

    कभी-कभी वह छोटी-छोटी 
    बदमाशियां याद आती हैं।
    पर क्या करूं इन्हीं यादों के साथ,  
    जिंदगी बितानी है।

होते थे, हम नाराज़ एक दूसरे से,
पर वह झूठ- मूठ की कट्टी,
और वह सच्ची वाली बट्टी,
अभी भी कर देती हैं, रोंगटे खड़ी।
बस याद आए वह पल कभी ।।
   
   वो टीचर -डे का डांस, 
   वो चिल्ड्रन डे का प्यार,
   कुछ महीनों में सब छूट जाएगा।
   एक झटके में सब टूट जाएगा।।

इन यादों को समेटना इतना आसान नहीं।

हंसते-रोते, नाचते-गाते, खेलते-कूदते,
और कभी-कभी पढ़ते-लिखते,
ना जाने कहां चले गए वो 14 साल।
जिनको याद करके हम साथ रोएंगे।।

   वो कॉरिडोर वाली मीटिंग, 
   वो पीरियड का बंक,
   वो जूनियरों को डांटना।
   वो लंचवाला फन।।

इन पलों को समेट कर ,
ले जाना इतना आसान तो नहीं।
पर फिर भी कोशिश करूंगी,
तुम भुलो ना कभी।

   याद आए तो, एक मिस कॉल ही कर देना,
   क्या पता किसी और से मुलाकात हो जाए तुम्हारी।
   पर फिर भी कोशिश करूंगी,
   तुम भूलो ना कभी।

इन यादों को समेटना इतना आसान नहीं।

   साथ नहीं छूटेगा दिल से तो 
   यही आवाज आ रही है।
   ना जाने क्यों ये धड़कन,
   जोर जोर से चिल्ला रही है।

अब डर सा लग रहा है, दिल बैठ रहा है
जैसे सब खत्म हो जाएगा अभी।
पर क्या बताऊं तुम्हें जिंदगी है ना तो
पिक्चर तो अभी बाकी है, मेरे दोस्तों।।

   हां शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गई
   इन लाइनों में, मैं शायद कहीं कुछ भूल गई।
  कोई किस्सा या शायद कोई कहानी
  पर कहा था ना मैंने,
  इन यादों को समेटना इतना आसान नहीं।

इन यादों को समेट ना इतना आसान नहीं।।


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