वर्तमान परिपेक्ष में भारतीय संविधान की प्रासंगिकता एवं महिलाओं के लिए योगदान
सबसे पहले हम यह समझे कि संविधान क्या है? संविधान किसी देश के स्वरूप को निश्चित करता है, सरकार के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण रखता है और उन्हें तानाशाह होने से बचाता है। संविधान देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा करता है। हमारा संविधान, संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर, 1949 को पारित हुआ तथा 6 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ, इसलिए 26 जनवरी का दिन भारत के संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी का दिन गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व में सबसे लंबा लिखित संविधान है, इसमें 448 अनुच्छेद 12 अनुसूचियां और 94 संशोधन शामिल है। भारतीय संविधान तैयार करने वाली समिति की स्थापना 29 अगस्त, 1947 को हुई, जिसके अंदर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर नियुक्त हुए।
वर्तमान समय में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हमारा संविधान उतना ही प्रासंगिक है या फिर राजनीतिक बेड़ियों में जकड़ कर नेताओं द्वारा अपने हिसाब से प्रयोग किया जा रहा है, क्योंकि किसी को भी देशहित नहीं दिख रहा है सब अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति में लगे दिखाई देते हैं।
भारतीय संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है, अपितु राज्य की महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने की शक्ति भी प्रदान करता है। महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए वर्ष 1990 में सांसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। समय-समय पर संविधान में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने हेतु संशोधन किए जाते रहे हैं जैसे - सन् 1993 में भारतीय संविधान में 73वें और 74वें संशोधनों के माध्यम से महिलाओं के लिए पंचायतों और नगर पालिकाओं के स्थानीय निकायों में सीटों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है, जो स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। वर्तमान में महिलाओं की स्थिति को अभिनिश्चित करने में महिला सशक्तिकरण को प्रमुख मुद्दे के रूप में माना गया है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 39 द्वारा महिलाओं को समान कार्य के लिए पुरुषों के बराबर वेतन, महिलाओं की शोषण से रक्षा प्रदान करता है। हमारा संविधान अनुच्छेद 42 द्वारा काम की न्याय संगत और मानवोचित दशायें सुनिश्चित करता है अर्थात् स्त्री से कठोर परिश्रम वाला काम न लेना, खतरनाक मशीनों पर कार्य न करवाना, अत्यधिक समय तक कार्य न करवाना आदि। संविधान में इन तमाम प्रावधानों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे महिलाओं को बचाने के लिए 1956 से अब तक 50 से भी ज्यादा कानून बन चुके हैं जैसे - दहेज निषेध कानून 1961, अनैतिक व्यापार निषेध कानून 1956, घरेलू हिंसा महिला सुरक्षा कानून 2005, कार्यस्थल में महिला दुराचार निषेध कानून 2013 आदि। अतः पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव को समाप्त करने के लिए, उनके अधिकारों को न केवल सुनिश्चित करना जरूरी है, बल्कि उन अधिकारों का क्रियान्वयन भी आवश्यक है।
हमारे देश के संविधान निर्माण में महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संविधान निर्माण में 15 महिलाओं ने अपना योगदान दिया है। हमारा संविधान भी महिलाओं के लिए बहुत से प्रावधानों के तहत उनके अधिकार एवं उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है। अतः भारतीय संविधान का महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण योगदान है, जिससे आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में सक्षम है।
संविधान में प्रत्येक नागरिक के लिए यह मूल कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वह महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध प्रचलित अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करें।
वर्षों से महिलाओं ने समाज के अन्याय और पूर्वाग्रह को झेला है, लेकिन आज बदलते समय के साथ उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली है। उन्होंने लैंगिक रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ दिया है और अपने सपनों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मजबूती से खड़ी है। यह सब हमारे संविधान की वजह से हुआ है। यद्यपि वर्तमान समय में महिलाओं के साथ अपराध बढ़े हैं, संविधान द्वारा उन अपराधों के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन यदि हमारे संविधान में महिलाओं के लिए प्रावधान नहीं होते, तो शायद महिलाओं के साथ होने वाले अपराध दब जाते और महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता। वर्तमान समय में हमारे संविधान की वजह से ही देश की महिलाओं को न्याय मिल पा रहा है , लेकिन वर्तमान समय में ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं को संविधान द्वारा दिए गए प्रावधानों की जानकारी होनी चाहिए, जिससे उनके साथ भी न्याय हो सके। अतः हमारे संविधान में महिलाओं के लिए दिए गए प्रावधानों का प्रचार-प्रसार होना भी आवश्यक है।
मौजूदा समय की स्थितियों पर गौर करें, तो आज भी चुनौतियां वैसी की वैसी हैं, जब भारत स्वतंत्र हुआ था।सच्चाई यह है कि आजादी के बाद से आज तक जिस आदमी के विकास अथवा सुशासन का ढिंढोरा हर चुनाव में पीटा जाता है, उसकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब ही होती जा रही है। आज हमारा देश राजनीतिज्ञों की वजह से पिछड़ा, अति-पिछड़ा, दलित, महादलित अल्पसंख्यक बहुसंख्यक और सुवर्ण आदि भागों में विभक्त किया जा चुका है, जबकि हमारा संविधान सभी को एक समान वर्ग में परिभाषित करता है। वर्तमान में अति बौद्धिक लोगों द्वारा संविधान की अखंडता और संप्रभुता को भी चोट पहुंचाई जा रही है और इसके लिए वह लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपना हथियार बना रहे हैं। यदि हमें हमारे संविधान की प्रासंगिकता को बनाए रखना है, तो हमें एक जिम्मेदार नागरिक की तरह अच्छे नेताओं का चुनाव करना होगा, नहीं तो हमारा सविधान उतना प्रासंगिक नहीं रह जाएगा, जितना सोचकर बनाया गया है।
गौरतलब है कि बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान बनाते समय इस बात की उम्मीद की थी कि कुछ वर्षों में भारत देश में संविधान का राज्य होगा। देश में गरीबी स्तर पर रह रहे लोगों को प्राथमिकता के तौर पर मुख्य धारा में जोड़ा जाएगा। सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रजातंत्र कायम हो जाएगा, परंतु बाबा साहब की उम्मीद वर्तमान में तार-तार हो गई है, उनके उम्मीदों का पुल ध्वस्त हो गया है ।दलित -पिछड़े आज तक मुख्यधारा से मीलों दूर हैं, दलितों का दमन आम सी बात हो गई है। दर्शकों गुजर गए एक व्यक्ति ने कितने संवैधानिक संशोधन देखें, लेकिन उसके जीवन स्तर में कोई संशोधन नहीं हुआ। अतः इससे पता चलता है कि मौजूदा समय में हमारे संविधान की प्रासंगिकता उतनी ही है जितनी कि जब उसे देश हित में अंगीकृत किया गया था।
यदि जब देश की सभी महिलाओं को हमारे संविधान द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रावधानों की जानकारी होगी, तभी वे अपने लिए न्याय मांग सकेंगी। अतः आज हमारे संविधान द्वारा दिए गए प्रावधानों की वजह से ही महिलाओं की हर क्षेत्र में उन्नति हुई है। आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है। महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है। बस महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमारे संविधान में कुछ संशोधन जरूरी है आज हमारे देश में महिलाओं की शक्ति को समझा है, जिससे देश का विकास बढ़ा है।
वर्तमान परिपेक्ष में संविधान की प्रासंगिकता उतनी ही है जितनी संविधान बनाते समय सोची गई थी। लेकिन महिलाओं के लिए योगदान सराहनीय है। अतः हमें अपने संविधान पर गर्व है।
"भलाई का है, जिसमें विधान,
वह है, भारत का संविधान।"

