जीवन में परिश्रम का महत्व
प्रस्तावना--
"घूम रहा है चरका भ्रम.. भ्रम ...भ्रम ...
कहता है कर लो जीवन में श्रम..श्रम.. श्रम...!"
किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि-
"जिसने किया परिश्रम उसका जीवन सुखी रहा।
करो परिश्रम उन्नत हो, सबने यही कहा है।।"
कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता - व्यक्ति की कर्म भावना ही उसे महान अथवा क्षुद्र बना देती है। संसार में अनेक उदाहरण है जहां मनुष्य ने अपने श्रमशीलता के बल पर सफलता के शिखर को छुआ है। जीवन को सफल बनाने के लिए व्यक्ति को कुछ ना कुछ काम करना पड़ता है। यश, उन्नति, धन आदि की प्राप्ति के लिए प्रयास करना ही पड़ता है। आत्मोन्नति के लिए भी घोर मेहनत करनी पड़ती है।
परिश्रम से तात्पर्य- परिश्रम से तात्पर्य है शक्ति भर योग्यता से काम करना। काम करने की शैली को जानकर तन-मन-धन से अपने सोचे हुए कार्य को सफल बनाने के प्रयत्न और प्रयास को परिश्रम कहते हैं। किसी भी मनुष्य का जीवन सफल तभी होता है, जब वह परिश्रम करता है।आलसी बनकर केवल भाग्य के सारे रहकर और अकर्मण्य बना व्यक्ति मृतक के समान है। आज हम संसार में जितने नए आविष्कारों को देख रहे हैं, जितनी उन्नति देख रहे हैं , जितना विकास देख रहे हैं, सब के पीछे परिश्रम ही दिखाई देता है। धर्म के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में, आर्थिक क्षेत्र में , साहित्य के क्षेत्र में, देशोन्नति और देश विकास के क्षेत्र में सर्वत्र परिश्रम की महिमा ज्ञात होती है। परिश्रम करने वालों को ही जीवन में सफलता मिलती है। आज के पर्यटक , पर्वतारोही आदि परिश्रम के कारण ही प्रसिद्ध हो रहे हैं।
महत्व - विद्यार्थी अपने ही जीवन को देख लें। जो विद्यार्थी लगन के साथ अपनी पढ़ाई में लगे रहते हैं, वह अवश्य सफल होते हैं। बुद्धि होते हुए भी यदि परिश्रम न किया जाए तो बुद्धि भी बेकार हो जाती है। गरूड़ कितनी तेज चाल से उड़ने वाला है, पर वह उड़े नहीं तो पग भर भी नहीं जा सकता। चींटी धीरे -धीरे चलती है, पर चलते-चलते कोसों दूर चली जाती है। यह सब परिश्रम के कारण ही तो है होता है ।जीवन में परिश्रम का बहुत बड़ा महत्व है। संसार में जितने भी लोग बड़े हुए हैं योग्य हुए हैं उनमें उनका परिश्रम ही प्रधान रहा है। अतः यदि हम स्वयं को और अपने देश को ऊपर उठाना चाहते हैं तो पुरानी बातों को भूल कर हम परिश्रम के महत्व को समझे इससे भारत देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाने में हमें देर नहीं लगेगी
कुछ लोग भाग्यवादी होते हैं उनका कहना है-
"अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मूलका कह गए, सबके दाता राम।।"
कवि रहीम ने भी कहा है-
"पुरुषार्थ से जो कहूं, सरते काम रहीम।
पेट लागि वैराट घर, तपत रसोई भीम।।"
जो भाग्य में हैं वही होगा, यह बात एक सीमा तक ठीक है। पर भाग जिसे कह रहे हैं वह भी मनुष्य के किए हुए कर्मों का फल ही है। जैसा किया वैसा पाया। जैसा करेंगे वैसा पाएंगे। अतः भाग्य भी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम से ही बनता है।
परिश्रम ही सफलता का मूल मंत्र है। निरंतर परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। परिश्रम का रास्ता फूलों का नहीं कांटों का रास्ता होता है। श्रम और दृढ़ निश्चय के बल पर ही व्यक्ति असफलताओं और पराजय को पीछे धकेल सफलता और विजय को खींच ला सकता है। अतः यदि हम स्वयं को और अपने देश को ऊपर उठाना चाहते हैं, तो पुरानी बातों को भूल कर हम परिश्रम के महत्व को समझे। इससे भारत देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाने में हमें देर नहीं लगेगी।
इतिहास के पन्नों को पलटने से ज्ञात होता है कि परिश्रम के कारण साधारण स्थिति के लोग अच्छे स्थिति के बन गए और आलसी रहकर बड़े-बड़े बने हुए लोग भी मिट गए।परिश्रमी लोग जो चाहे कर सकते हैं। महान विजेता नेपोलियन अपनी सेना के साथ देश-देश जीता हुआ, बाढ़ के पानी की तरह बढ़ता आ रहा था। आल्पस पर्वत को देखकर सैनिक रुके, लेकिन जब नेपोलियन "कहां है आल्पस? मुझे तो कहीं नजर नहीं आता" कहते आगे बढ़ा, तो सभी सैनिकों उसके साथ ही हो लिए। अतः ऐसा ज्ञात होता है कि परिश्रम जीवन का मूल तत्व है
उपसंहार -- परिश्रम शरीर से भी होता है और बुद्धि से भी। दोनों प्रकार का ही परिश्रम मानव के लिए हितकारी होता है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ राजेंद्र प्रसाद, टाटा एंड बिल्ला परिश्रम से ही जीवन में सफल हुए हैं।
अतः प्रत्येक मनुष्य को अपनी सब प्रकार की उन्नति के लिए, जीवन को सुखी बनाने के लिए सदा परिश्रम करना चाहिए क्योंकि-
"जो परिश्रम करते हैं उनका ही जीवन उन्नत होता है।
आलस में पड़कर प्राणी रोगी, दुखी ही होता है।।"

